परिचय
सभी प्रशंसा अल्लाह को है, ईश्वर की कृपा और सलाम हो हज़रत मुहम्मद पर जिनके बाद कोई अन्य नबी नहीं l
जब मैं १६ वर्ष का था तब देल कार्नेगी की पुस्तक "लोगों के साथ निपटने की कला" मेरे हाथ लगी l यह एक एक अनूठी पुस्तक थी, मैं इसे कई बार पढ़ा l
लेखक ने सुझाव दिया है कि किसी भी व्यक्ति को प्रत्येक महीने में कम से कम एक बार इस किताब को पढ़ना चाहिए l मैं ने लोगों से निपटने के समय उन सिद्दांतों को लागु किया और मैंने शानदार परिणाम देखा l
कार्नेगी अधिकांश सिद्दहांत की चर्चा करता था और अक्सर उदाहरण के रूप में प्रतिष्ठित लोग रूसेल्वेंत,लिंकोलं,जोसेफ माईक इतियादी को उल्लेख करता था l
मुझे सोंच विचार करने के बाद यह एहसास हुआ की लेखक का लक्ष्य केवल दुनिया का आनंद प्राप्त करना था l और कितना सुन्दर होता यदि उसे इस्लाम धर्म और उसकी शिष्टताओं का पता होता! और कितना अच्छा होता की लोगों के साथ अच्छे बर्तावों के कौशलों को एक इबादत भी मानता जिसके द्वारा एक भक्त अपने पालनहार को प्रसन्न करता है l
फिर मैं अपने इतिहास में खोजना शुरू किया तो पता चला कि अल्लाह के पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- की ज़िन्दगी , उनके साथियों के चरित्र और हमारी दुनिया के महान लोगों के किरदारों में पाठ सीखने के लिए काफी कुछ उपलब्ध है l
तभी से मैं ने अन्य लोगों से निपटने की कला के विषय पर इस पुस्तक की रचाई शुरू कर दी l उल्लेखनीय है कि यह किताब एक महीना या एक वर्ष के कठिन परिश्रम का उत्पाद नहीं है, बल्कि सच तो यह है कि यह गंभीर अध्यान बीस वर्षोँ की कठिनाइयों का परिणाम है l
हालांकि अभी तक अल्लाह ने मुझे लगभग बीस किताबों के उत्पादन की क्षमता के साथ धन्य किया है, जिनमें से कुछ तो लाखों की संख्या में मुद्रित हो चुके हैं l लेकिन मुझे विश्वास है कि उन सब पुस्तकों की तुलना में सबसे अधिक प्यारी, अनमोल, लाभदायक-मेरे ख्याल में-मेरी यही पुस्तक है l
मैं ने इसके शब्दों को अपने खून के साथ मिश्रित स्याही से लिखा है, मैं ने उसकी लकीरों के बीच अपनी आत्मा को निकाल कर जान डाला है, और मैं ने अपनी यादों का निचोड़ उस में शामिल किया है l
मैं ने इन शब्दों को अपने दिल की अथाह गहराईयों से रचा है, ताकि पाठक के दिल में अच्छी तरह उतर जाए, और मुझे यह जानकर बेहद ख़ुशी होगी कि पाठक ने वास्तव में इन शिक्षाओं को अपनी जीवन पर लागु किया और अपने किरदार में सुधार या परिवर्तन लाया, और अपने बर्ताव में कुछ तरक्की प्राप्त किया l या वास्तव में जीवन का आनंद लेना शुरू कर दिया है l
तो इस इस पर मेरा अनुरोध है कि यदि वह स्त्री या पुरुष अपने सत्य विचारों और भावनाओं को मुझ तक पहूँचाए या कोई मेस्सेज लिखे या ईमेल या एसएमएस के माध्यम से भेजें तो में इस मेहरबानी के लिए उनका आभारी हूँगा और में उस स्त्री या पुरुष के लिए उनके अभाव में अपनी दुआ में याद रखूँगा l
मैं ईश्वर से प्राथना करता हूँ के पाठक को इन पन्नों से लाभ हो और वह मेरी इन प्रयासों को केवल उसी की प्रसन्नता के लिए कर दे l
ये पन्ने उसने लिखे हैं जो सदा आप की भलाई के लिए प्रर्थना करता है l
डॉक्टर मुहम्मद अब्द्र्र रहमान अल-अरीफी l