अपनी ज़ुबान को मीठी रखिए | जानने अल्लाह

अपनी ज़ुबान को मीठी रखिए


Site Team

हमारी जीवन में सदा ऐसे अवसर आते रहते हैं जहां हमें दूसरों को सलाह देने और रास्ता बताने की आवश्यकता पड़ती है l जैसे बेटे को , पत्नी को, मित्र को, पड़ोसी को , या माता पिता को l
आमतौर पर सलाह के अंतिम परिणाम उसकी शुरूआत पर निर्भर करता है l
मतलब:यदि सलाह एक उचित ढंग पर और कोमल तरीक़े से शुरू की जाए तो अंत भी उसी तरह से होती है l

और यदि कठोर और कड़े ढंग से शुरू किया जाए तो अंत भी उसी तरह होता है l  
जब हम लोगों को सलाह देते हैं तो वास्तव में हम उनके शरीर नहीं बल्कि मन को संबोधित करते हैं l इसलिए आप कभी कभी देखेंगे कि बच्चे अपनी माँ से सलाह स्वीकार कर लेता है किन्तु बाप से स्वीकार नहीं करते हैं, या कभी इसका उल्टा होता है l
इसी तरह छात्र एक शिक्षक से सलाह स्वीकार करते हैं किन्तु अन्य से नहीं करते हैं l
सलाह देने का एक महत्वपूर्ण कौशल यह है कि सलाह ज़रूरत से ज़ियादा न हो, और छोटी छोटी बात में बाल की खाल न निकालें, ताकि दूसरों को ऐसा न लगे कि आप लगातार उनकी छोटी बड़ी बात को नज़र में रखे हुए हैं, और यह बात उन पर भारी न गुज़रे l

कविता:  
(मूर्ख आदमी लोगों का नेता नहीं होता है, लोगों का नेता तो वह होता है जो मूर्ख होने का दिखावा करता है l)
यदि आप अपनी सलाह एक सुझाव के रूप में दे सकते हैं तो दें l
उदाहरण के लिए: यदि आप की पत्नी ने रात का खाना आपको दिया,  बनाने और पकाने में थकी, किन्तु नमक ज़रा ज़ियादा होगया, तो हरगिज़ ऐसा मत कहिए: क्या बकवास भोजन है! मैं अल्लाह की शरण मांगता हूँ, ऐसा लगता है कि नमक की पूरी पैकेट डाल दी l
बल्कि इसतरह कहिए:यदि नमक थोड़ा कम डालते तो कितना अच्छा रहता!  
इसी प्रकार, यदि आपने अपने बेटे को गंदे कपड़े में देखा तो, उसे सुझाव दीजिए किन्तु एक सलाह के रूप में, क्योंकि लोग आदेश सुनना पसंद नहीं करते हैं, आप उसे इस तरह भी कह सकते हैं: कितना अच्छा होता यदि आप इस से बेहतर कपड़े पहने होते l  
यदि कोई छात्र स्कूल को देर से आया तो आप उसे इस तरह कह सकते हैं: कितना अच्छा होता  कि आप देर नहीं किए होते l आप सदा अच्छे से अच्छे ढंगों का प्रयोग किया करें, जैसे: आपका क्या ख्याल है? यदि ऐसा करते! मेरी सलाह तो ऐसी है l
इस तरह संबोधित करने से अच्छा है:अरेमूर्ख! कितनी बार तुम्हें कहा! तुम तो समझते ही नहीं!कब मैं तुम्हें सिखा सकूंगा!
उसे बेइज़्ज़त मत कीजिए उसे महत्व दीजिए भले ही वह ग़लती पर हो l क्या आप जानते हैं? ऐसा क्यों? यह इसलिए कि असल लक्ष्य तो उसकी ग़लती को सुधारना है  कोई बदला लेना, या अपमान करना तो है नहीं l
हे लोगो!स्पष्ट शब्दों में मुझ से सुन लीजिए कि कोई भी आदमी आदेश के रूप में बात को स्वीकार करना नहीं चाहता है l
इस संबंध में अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- के दृष्टिकोण को देखिए l

एक दिन हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- ने अब्दुल्ला-बिन-उमर को रात में न्फ्ल नमाज़ पढ़ने केलिए सलाह देना चाहा l तो उन्होंने उसे बुलाकर यह नहीं कहा :हे अब्दुल्ला! रात की नमाज़ पढ़ो l  
बल्कि, उन्होंने सलाह के रूप में आदेश दिया और कहा: वाह अब्दुल्ला कितना अच्छा आदमी है!यदि रात में नमाज़ पढ़ता है l और एक अन्य कथन में है कि उन्होंने कहा: हे अब्दुल्ला! फुलाना की तरह मत हो जाओ कि रात में नमाज़ पढ़ता था किन्तु अब छोड़ दिया l
वास्तव में, यदि आप बिना ग़लती का एहसास दिलाए सुधार सकते हैं तो यह तो बहुत अच्छी बात है l 

एक आदमी  अब्दुल्ला-बिन-मुबारक के पास छींका किन्तु "अलहम्दुलिल्लाह" (सारी प्रशंसा अल्लाह ही केलिए है)[1] नहीं कहा,  
अब्दुल्ला-बिन-मुबारक ने उससे पूछा यह बाताओ यदि कोई व्यक्ति छींकता है तो उसे किया कहना चाहिए? तो उसने कहा: "अलहम्दुलिल्लाह" (सारी प्रशंसा अल्लाह ही केलिए है), तो अब्दुल्ला-बिन अल-मुबारक ने कहा: "यरहमुकल्लाह" (अल्लाह  तुम पर दया करे)l
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-का भी यही तरीक़ा रहा, जब वह असर की नमाज़ से लौटते थे तो अपनी पवित्र पत्नियों के पास जाते थे, और उनके साथ बैठते थे और बातचीत करते थे l एक बार वह ज़ैनब-बिनति-जहश के पास गए तो उन्होंने उनके पास शहद देखा  और वह शहद और मिठाई को पसंद करते थे, इसलिए वह मधु पीने लगे और बात करने लगे और वह दूसरी पत्नियों के यहाँ ठहरने की तुलना में ज़रा ज़ियादा समय केलिए वहाँ रुक गए, इस पर हज़रत आइशा और हज़रत हफ़्सा को डाह हुआ, और दोनों ने मिलकर यह योजना बनाई कि दोनों में से जिसके पास अल्लाह के पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-आएं तो यह कहेगी: आपके पास से मुझे मग़ाफीर[2] की बदबू आरही है l और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-बहुत ज़ियादा इस बात का ख्याल रखते थे कि उनके शरीर या मुंह से कोई बदबू न आने पाए क्योंकि उनको हज़रत जिब्रिल और लोगों के साथ बात करनी रहती थी l
तो जब वह हफ़्सा के पास गए तो वह उनसे पूछी कि क्या खाए थे?
तो उन्होंने कहा:मैंने ज़ैनब के पास शहद खाया है l
तो वह बोलीं कि मुझको तो आपके पास से मग़ाफीर की बदबू आरही है l
तो उन्होंने कहा:नहीं, मैंने तो केवल शहद खाया है और अब मैं इसे दुबारा नहीं पियूंगा l
इस के बाद वहाँ से उठे और हज़रत आइशा के पास गए, तो हज़रत आइशा ने भी वही बात कही l

समय गुज़रने के बाद अल्लाह ने उनके लिए इस रहस्य खोल दिया l

कुछ दिनों के बाद हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने हज़रत हफ़्सा को एक बात बताई और किसी को बताने से मना किया  किन्तु उन्होंने वह बात दुसरों को बता दी, तो एक दिन हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-उनके पास आए l उस समय उनके पास शिफ़ा-बिनति-अब्दुल्लाह आई हुई थी, वह एक ऐसी मुस्लिम महिला थी जो चिकित्सा जानती थी और रोगियों का इलाज करती थी l
तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने उनकी ग़लती की ओर ध्यान दिलाने का फैसला किया, लेकिन एक उचित तारीक़े से और इस तरह कि उनको पता भी न चले, ताकि नरमी और आसानी से उनको बात समझ में आजाए, तो आइए देखते हैं उन्होंने क्या किया?
उन्होंने शिफ़ा से कहा: क्या तुम इसे चींटियों वाला मंत्र नहीं सिखाओगी जैसे तुम ने इसे लिखना सिखाया l  
चींटियों वाला मंत्र यह था कि अरब महिलाएं इसे पढ़ा करती थी किन्तु उस मंत्र को सुनने वाला कोई भी आदमी जान सकता है कि उसमें न तो कोई लाभ है और न कोई नुक़सान l
चींटियों वाला मंत्र जिसे अरब की महिलाएं पढ़ती थी वह कुछ इस तरह था l

العروس تحتفل وتختضب وتكتحل وكل شيء تفتعل غير أن لا تعصي الرجل .

 

 

(दुल्हन जश्न मनाती है मेहंदी और काजल लगाती है और सब कुछ करती है किन्तु अपने पति की अवज्ञा नहीं करती है l)
दरअसल हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने  इन शब्दों के द्वारा उनको सबक़ सिखाना चाहते थे, और इशारों में ग़लती बताना चाहते थे इसलिए:

"غير أن لا تعصي الرجل"

 

(किन्तु अपने पति  की अवज्ञा नहीं करती है)

को कई बार दुहराने केलिए कहा गया था l

दूसरों की ग़लतियों को ठीक करने का यह कितना ही सुंदर तारीक़ा है ताकि दिलों में प्रेम भी स्थापित रहे, और ग़लती या बार बार सलाह देने से आपसी प्यार प्रभावित न होसके l
पुराने लोगों में से एक आदमी ने एक व्यक्ति से एक पुस्तक उधार लिया… कुछ दिनों के बाद उसने पुस्तक लौटा दी,लेकिन उस पुस्तक पर  रोटी या अंगूर के कुछ धब्बे लगे थे, किताब के मालिक ने कुछ नहीं कहा बिल्कुल चुप रहा l कुछ दिनों के बाद, फिर वही आदमी उसके पास एक और पुस्तक उधार मांगने आया, तो उसने पुस्तक को एक थाली में रखकर दिया, इस पर आदमी ने कहा:मैं तो केवल पुस्तक लेना चाहता हूँ, यह थाली क्यों दे रहे हो?
तो उसने कहा पुस्तक पढ़ने केलिए है, और प्लेट भोजन ले जाने के लिए!
इसपर उसने किताब को लिया और चल दिया, किन्तु उसे सबक़ तो मिल गया l
इसी तरह एक व्यक्ति जब रात में घर आता था, और अपने शर्ट को उतार कर खूटी में लटका देता था, और सो जाता था सोने के बाद उसकी पत्नी आती थी और बटुआ खोलकर पाँच रियाल के नोटों को निकाल लेती थी, जब वह सुबह में उठता था और काम पर जाता था, और तरकारी या किसी और दुकान में पैसे देने केलिए अपना बटुआ खोलता था तो पता चलता था कि खुले पैसे नहीं हैं l 
वह हैरान रह गया कि पैसा आख़िर जाता कहाँ है उसने इसके बारे में सोचा और देखभाल किया तो उसे असल रहस्य का पता चल गया l  
एक दिन, जब वह घर को वापस लौट रहा था, तो आते समय उसने अपनी जेब में एक मेंढक रख लिया l आकर शर्ट को उतरा, और सदा की तरह बिस्तर पर लेट गया, और सोने का दिखावा किया, और खर्राटे लेने लगा, और अपने शर्ट पर भी नज़र रखे हुए था, इतने में उसकी पत्नी आई और सदा की तरह धीरे धीरे जेब में हाथ डाली तो उसका हाथ मेंढक को लगा हाथ लगते ही मेंढक अचानक जेब में कूद पड़ा तो वह चिल्लाई, ओह मेरा हाथ! तो पति ने अपनी आँखें खोलीं, और चिल्लाया:आह! मेरी जेब!
क्या ही अच्छा होता यदि हम सारे लोगों के साथ ऐसा ही ढंग अपनाएँ,
हमारे बच्चों के साथ और हमारे छात्रों के साथ विशेष रूप से जब उनसे कोई ग़लती होजाती है l
नाइफ नामक एक मित्र था उसकी मां एक पवित्र और धार्मिक महिला थी, वह कभी भी हरगिज़ घर में कोई फोटो नहीं देखना चाहती थी, क्योंकि जिस घर में फोटो या कुत्ता हो उसमें स्वर्गदूत(दया के फ़रिश्ते) प्रवेश नहीं करते हैं l घर में एक छोटी सी बच्ची थी उसके पास कई प्रकार के खिलौने थे सिवाय गुड़ियों और पुतलों के, तो उसकी मौसी ने गुड़ियां और पुलते ख़रीद कर उसको उपहार दीं, और बोली कि अपने कमरे में ही गुड़ियों से खेलो, और मां को मत दिखाओ l   
दो दिनों के बाद, माँ को पता चल गया, तो एक उपयुक्त ढंग से सलाह देने का फैसला करली l जब वे खाने की मेज़ पर बैठे तो नाइफ की मां ने कहा:मेरे बच्चो! दो दिनों से मुझे लग रहा है कि घर में कोई स्वर्गदूत प्रवेश नहीं किए, पता नहीं  वे क्यों नहीं आए!"ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह" (न कोई शक्ति है और न कोई बल है मगर अल्लाह ही सेl)  वह छोटी लड़की चुपचाप सुन रही थी, खाने के बाद वह लड़की अपने कमरे में गई और अपने सारे खिलौनों के बीच  में से गुड़िया उठा ली, और उसे लेकर अपनी माँ के पास आई और बोली: मामा! यह देखो! यही है जिसने स्वर्गदूतों को घर से भगा दिया है, यह लो इसके साथ जो करना चाहती हो करो l
यह दृष्टिकोण कितने ही अच्छे हैं और हम में से कोई भी आदमी यदि लोगों की ख़ामियों और ग़लतियों को सही करना चाहता है या उन्हें सलाह देने का प्रयास करता है तो इनका प्रयोग कर सकता है, इस द्वारा वह सलाह उनपर भारी नहीं गुज़रेगी, और न ही ग़लती करने वाला उबेगा और न बेज़ार होगा l  
मतलब आप उनके सम्मान को चोट मत पहुँचने दीजिए l शहद खा लीजिए किन्तु उसके छत्ते को नष्ट मत कीजिए l
और न उनको इस रूप में सलाह दीजिए कि उन्हें यह लगे कि वह अधर्मी होगया है, बल्कि, उसके बारे में अच्छा विचार रखिए और ऐसा समझिए कि यह ग़लती उससे अनजाने में होगई है, या उसे पता नहीं था l

इस्लाम के प्रारंभिक समय में, शराब निषिद्ध नहीं था l
बाद में कई चरणों में निषिद्ध हुआ l
पहले चरण में, अल्लाह सर्वशक्तिमान ने शराब को तुच्छ बताया किन्तु  
इसे बिल्कुल निषिद्ध नहीं किया,  आलाह ने कहा:

 

  " يَسْأَلُونَكَ عَنِ الْخَمْرِ وَالْمَيْسِرِ قُلْ فِيهِمَا إِثْمٌ كَبِيرٌ وَمَنَافِعُ لِلنَّاسِ (البقرة:219)

 

(तुम से शराब और जुए के विषय में पूछते हैं, कहो:उन दोनों चीज़ों में बड़ा पाप है यद्दपि लोगों केलिए कुछ लाभ भी हैं l ) [पवित्र कुरान, अल-बक़रह: 2:219]

दूसरे चरण में, नमाज़ के समय इसे पीने से मना किया गया l

 

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَقْرَبُواْ الصَّلاَةَ وَأَنتُمْ سُكَارَى حَتَّىَ تَعْلَمُواْ مَا تقولون( النساء:43)

 

(ऐ ईमान लानेवाले! नशे की दशा में नमाज़ में व्यस्त न हो, जब तक कि तुम यह न जानने लगो कि तुम क्या कह रहे हो l)(अन-निसा:४३)   
इसके बाद नमाज़ में व्यस्त होने और एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ का समय आजाने के कारण आदमी केलिए शराब पीने का समय ही नहीं बचा l
अंतिम चरण में, अल्लाह ने कहा:

" يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِنَّمَا الْخَمْرُ وَالْمَيْسِرُ وَالأَنصَابُ وَالأَزْلامُ رِجْسٌ مِّنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ فَاجْتَنِبُوهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ "(المائدة: 90)

(ऐ ईमान लेनेवालो! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गंदे शैतानी काम हैं,अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो l)(अल-माइदा:९०)

इसके बाद हर वह व्यक्ति जो पीता था उसने पीना छोड़ दिया और बिलकुल उससे रुक गए, किन्तु कुछ लोग जो मदीना के बाहर रहते थे उनको शराब के पूर्ण रूप से निषिद्ध होने के बारे में पता नहीं था l एक दिन आमीर-बिन-रबीआ एक महान साथी अपनी एक यात्रा से वापस लौटे थे, तो उन्होंने शराब का एक मटका उनकेलिए उपहार में पेश किया, शराब का एह भरा हुआ घड़ा l
हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-कभी शराब नहीं पिए न इस्लाम से पहले (अज्ञान के समय में) और न ही इस्लाम में, किन्तु लोग कभी कभी उनको उपहार में ऐसी चीज़ दे देते थे उनके अपने इस्तेमाल केलिए नहीं बल्कि दूसरों को देने या दूसरों को बेचने केलिए l और लोग कभी कभी उन्हें सोना और रेशम का कपड़ा भी देते थे, किन्तु वह उसे ख़ुद नहीं पहनते थे बल्कि अपनी पत्नियों या दूसरों को उपहार दे देते थे l
तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने शराब को आश्चर्य में देखा और आमिर-बिन-रबीआ की ओर पलटे और बोले:क्या आपको पता नहीं है कि यह मना किया जा चुका है?
तो उन्होंने कहा: नहीं! हे अल्लाह के पैगंबर! मुझे पता नहीं था l
इस पर उन्होंने कहा:तो जान लो कि मना किया जा चुका है l
फिर आमिर ने उसे उठा लिया इतने में कुछ लोगों ने उसे आहिस्ता से सुझाव दिया कि इसे बेच दो , तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने इस बात को सुन लिया, और कहा: नहीं, निस्संदेह आलाह ने  जब उसे मना कर दिया है तो इसकी क़ीमत को भी मना कर दिया l यह सुनने पर, उन्होंने उस मटका को लिया  और उसे ज़मीन पर बहा दिया l

इस बात से सावधान रहिए कि दूसरों को सलाह देते समय अपनी बड़ाई मत कीजिए और अपने आप को आकाश में मत दिखाइए और उसे बिल्कुल नीचे मत कीजिए क्योंकि इस बात को कोई भी स्वीकार नहीं करता है l
कुछ पिता-उदाहरण के लिए- जब अपने बेटे को सलाह देता है तो सब से पहले अपनी बड़ाई का पुलंदा बांधता है, और अपनी प्रतिष्ठा को उल्लेख करता है, मैं ऐसा था, मैं ऐसा था, और शायद बेटा पहले से ही अपने बाप का इतिहास जानता है l

यदि सलाह देते समय आपको उदाहरण देने की ज़रूरत हो तो कोशिश यही कीजिए कि अपनी बहादुरी, गौरवशाली कार्रवाईयों और कारनामों का उदाहरण मत दीजिए, बल्कि दूसरों का उल्लेख कीजिए, ताकि उनको यह महसूस न हो कि आप अपनी बड़ाई कर रहे हैं और उनको गिरा रहे हैं l
संक्षेप में l
 अच्छा शब्द  एक दान है l (शुभ हदीस)



[1] इस्लाम धर्म के अनुसार छींकने के बाद "अलहम्दुलिल्लाह" (सारी प्रशंसा अल्लाह ही केलिए है) कहना सराहनीय है l और सुननेवाले को उसके जवाब में "यरहमुकल्लाह" (अल्लाह  तुम पर दया  करे) कहना चाहिए l   

[2] यह शहद ही तरह एक प्रकार की मीठी पीने की चीज़ है लेकिन इसमें एक अप्रिय गंध होती  है l

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