सम्मानित पाठक!
क्या अपने सृष्टिकर्ता अल्लाह को प्रसन्न करना, जिसने आपको सारी नेमतें दे रखी हैं और जो आपको उस समय रोज़ी देता था, जब आप माँ के पेट में थे और इस समय आपको साँस लेने के लिए शुद्ध हवा प्रदान करता है, लोगों की प्रसन्नता प्राप्त करने से ज़्यादा अहम नहीं है?
क्या दुनिया एवं आख़िरत की कामयाबी इस बात की हक़दार नहीं है कि उसके लिए इस फ़ानी दुनिया के सुखों का परित्याग किया जाए? अवश्य ही है!
आप अपने अतीत को अपना मार्ग दुरुस्त करने और सही काम करने से रोकने न दें।
आज ही सच्चे मोमिन बन जाएँ और शैतान को इस बात का मौक़ा न दें कि वह आपको सत्य के अनुसरण से रोक दे।
अल्लाह तआला ने कहा है :
{يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءَكُمْ بُرْهَانٌ مِنْ رَبِّكُمْ وَأَنزلْنَا إِلَيْكُمْ نُورًا مُبِينًا (174) (ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण आ गया है और हमने तुम्हारी ओर एक स्पष्ट प्रकाश उतार दी है।فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَاعْتَصَمُوا بِهِ فَسَيُدْخِلُهُمْ فِي رَحْمَةٍ مِنْهُ وَفَضْلٍ وَيَهْدِيهِمْ إِلَيْهِ صِرَاطًا مُسْتَقِيمًا (175) } फिर जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए तथा इस (क़ुरआन) को मज़बूती से थाम लिया, तो वह उन्हें अपनी विशेष दया तथा अनुग्रह में दाख़िल करेगा और उन्हें अपनी ओर सीधी राह दिखाएगा।)
[4 : 174, 175]