मुसलमान ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में क्या अक़ीदा रखते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि मुसलमानों के लिए ईसा अलैहिस्सलाम पर ईमान लाना, उनसे प्रेम रखना, उनका सम्मान करना और उनके पैग़ाम, एक अल्लाह की इबादत के आह्वान पर ईमान लाना वाजिब है? मुसलमान इस बात पर विश्वास रखते हैं कि अल्लाह के नबी ईसा (अलैहिस्सलाम) तथा मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) दोनों नबी थे और दोनों लोगों को अल्लाह तथा जन्नत का मार्ग दिखाने आए थे।
हमारा विश्वास है कि ईसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के भेजे हुए महानतम रसूलों में से एक थे। हमारा विश्वास है कि वह चमत्कारिक रूप से पैदा किए गए थे। पवित्र एवं महान अल्लाह ने क़ुरआन में हमें बताया है कि उन्हें पिता के बिना पैदा किया था, जिस तरह आदम अलैहिस्सलाम को पिता एवं माता के बिना पैदा किया था। अल्लाह हर चीज़ पर सक्षम है।
हमारा विश्वास है कि ईसा अलैहिस्सलाम न तो पूज्य हैं, न अल्लाह के बेटे हैं और न उनको सूली पर चढ़ाया गया है। बल्कि वह जीवित हैं। अल्लाह ने उनको ऊपर उठा लिया है, ताकि अंतिम काल में एक न्यायकारी शासक के रूप में उतरें। उस समय वह मुसलमानों के साथ होंगे। क्योंकि मुसलमान ही ईसा तथा अन्य सभी नबियों (अलैहिमुस्सलाम) के लाए हुए एकेश्वरवाद पर विश्वास रखते हैं।
उच्च एवं महान अल्लाह ने पवित्र क़ुरआन में हमें बताया है कि ईसाइयों ने ईसा अलैहिस्सलाम के संदेश को विकृत कर दिया और कुछ भटके हुए एवं गुमराह लोग हुए हैं, जिन्होंने इंजील को विकृत कर दिया, उसे बदल डाला और उसमें कई ऐसे पाठ जोड़ दिए, जो ईसा अलैहिस्सलाम ने नहीं कहे थे। इसका प्रमाण इंजील की एक से अधिक प्रतियाँ होना तथा उसके अंदर बहुत सारे विरोधाभासों का पाया जाना है।
अल्लाह ने हमें बताया है कि ईसा अलैहिस्सलाम अल्लाह की इबादत करते थे। उन्होंने किसी को अपनी इबादत करने नहीं कहा। वह लोगों को अपने सृष्टिकर्ता की इबादत करने का आदेश देते थे। लेकिन शैतान ने ईसाइयों को ईसा अलैहिस्सलाम की इबादत के मार्ग पर लगा दिया। अल्लाह ने क़ुरआन में हमें बताया है कि वह ग़ैरुल्लाह की इबादत करने वाले को कभी क्षमा नहीं करेगा और क़यामत के दिन ईसा अलैहिस्सलाम अपनी इबादत करने वालों से अपना संबंध तोड़ लेंगे। वह कहेंगे कि मैंने तुम्हें सृष्टिकर्ता की इबादत करने को कहा था। अपनी इबादत करने के लिए नहीं कहा था। इसका एक प्रमाण उच्च एवं महान अल्लाह का यह कथन है :
﴿یَـٰۤأَهۡلَ ٱلۡكِتَـٰبِ لَا تَغۡلُوا۟ فِی دِینِكُمۡ وَلَا تَقُولُوا۟ عَلَى ٱللَّهِ إِلَّا ٱلۡحَقَّۚ إِنَّمَا ٱلۡمَسِیحُ عِیسَى ٱبۡنُ مَرۡیَمَ رَسُولُ ٱللَّهِ وَكَلِمَتُهُۥۤ أَلۡقَىٰهَاۤ إِلَىٰ مَرۡیَمَ وَرُوحࣱ مِّنۡهُۖ فَـَٔامِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦۖ وَلَا تَقُولُوا۟ ثَلَـٰثَةٌۚ ٱنتَهُوا۟ خَیۡرࣰا لَّكُمۡۚ إِنَّمَا ٱللَّهُ إِلَـٰهࣱ وَ ٰحِدࣱۖ سُبۡحَـٰنَهُۥۤ أَن یَكُونَ لَهُۥ وَلَدࣱۘ لَّهُۥ مَا فِی ٱلسَّمَـٰوَ ٰتِ وَمَا فِی ٱلۡأَرۡضِۗ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِیلࣰا﴾ (ऐ किताब वालो! अपने धर्म में हद से आगे न बढ़ो और अल्लाह के बारे में सत्य के सिवा कुछ न कहो। मरयम का पुत्र ईसा मसीह केवल अल्लाह का रसूल और उसका 'शब्द' है, जिसे (अल्लाह ने) मरयम की ओर भेजा तथा उसकी ओर से एक आत्मा है। अतः अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और यह न कहो कि (पूज्य) तीन हैं। बाज़ आ जाओ! तुम्हारे लिए बेहतर होगा। अल्लाह केवल एक ही पूज्य है। वह इससे पवित्र है कि उसकी कोई संतान हो। उसी का है, जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है और अल्लाह कार्यसाधक के रूप में काफ़ी है।)
[4 : 171]
अल्लाह तआला ने कहा है :
(وَإِذْ قَالَ اللَّهُ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ أَأَنتَ قُلْتَ لِلنَّاسِ اتَّخِذُونِي وَأُمِّيَ إِلَٰهَيْنِ مِن دُونِ اللَّهِ ۖ قَالَ سُبْحَانَكَ مَا يَكُونُ لِي أَنْ أَقُولَ مَا لَيْسَ لِي بِحَقٍّ ۚ إِن كُنتُ قُلْتُهُ فَقَدْ عَلِمْتَهُ ۚ تَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِي وَلَا أَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِكَ ۚ إِنَّكَ أَنتَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ (तथा जब अल्लाह (क़यामत के दिन) कहेगा : ऐ मरयम के पुत्र ईसा! क्या तुमने लोगों से कहा था कि मुझे तथा मेरी माँ को अल्लाह के अलावा दो पूज्य बना लो? वह कहेगा : तू पवित्र है, मुझसे यह कैसे हो सकता है कि ऐसी बात कहूँ, जिसका मुझे कोई अधिकार नहीं? यदि मैंने यह बात कही थी, तो निश्चय तूने उसे जान लिया। तू जानता है, जो मेरे मन में है और मैं नहीं जानता जो तेरे मन में है। निश्चय तू ही सब छिपी बातों (परोक्ष)) को बहुत ख़ूब जानने वाला है।)
[5 : 116]
जिसे आख़िरत में मुक्ति चाहिए, वह इस्लाम ग्रहण कर ले और अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण करे
तमाम नबी तथा रसूल इस तथ्य पर एकमत हैं कि आख़िरत में केवल मुसलमानों ही को मुक्ति मिलेगी, जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं, किसी को उसका साझी नहीं बनाते और तमाम नबियों एवं रसूलों पर विश्वास रखते हैं। रसूलों के सारे अनुयायी और उनपर विश्वास रखने वाले तथा उनको सच्चा मानने वाले सारे लोग जन्नत में प्रवेश पाएँगे तथा जहन्नम से मुक्ति प्राप्त करेंगे। चुनांचे जो लोग अल्लाह के नबी मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने में रहे, उनपर ईमान लाए और उनकी शिक्षाओं पर अमल किया, वो सच्चे मोमिन व मुसलमान थे। लेकिन जब अल्लाह ने ईसा अलैहिस्सलाम को भेज दिया, तो मूसा अलैहिस्सलाम का अनुसरण करने वालों पर ईसा अलैहिस्सलाम पर ईमान लाना अनिवार्य हो गया। ऐसे में, जो लोग ईसा अलैहिस्सलाम पर ईमान ले आए, वे सच्चे मुसलमान हैं। इसके विपरीत जिन्होंने ईसा अलैहिस्लाम को ठुकरा दिया और मूसा अलैहिस्सलाम के दीन पर क़ायम रहने की ज़िद पर अड़े रहे, वे मोमिन नहीं हैं। क्योंकि उन्होंने अल्लाह के भेजे हुए एक रसूल पर ईमान लाने से मना कर दिया। फिर जब अल्लाह ने अंतिम रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भेजा, तो सभी लोगों के लिए उन पर ईमान लाना अनिवार्य हो गया। क्योंकि वह पालनहार रब जिसने मूसा एवं ईसा अलैहिमस्सलाम को रसूल बनाकर भेजा, उसी पालनहार ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अंतिम रसूल बनाकर भेजा, इस लिए जो व्यक्ति मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को रसूल नहीं मानेगा और कहेगा कि मैं मूसा अलैहिस्सलाम अथवा ईसा अलैहिस्सलाम के धर्म पर ही रहूंगा वह व्यक्ति मोमिन नहीं है।
किसी व्यक्ति का यह कहना काफ़ी नहीं है कि वह मुसलमानों का सम्मान करता है। आख़िरत में नजात प्राप्त करने के लिए सदक़ा करना और ग़रीबों की मदद करना भी काफ़ी नहीं है। इसके लिए अल्लाह, उसकी किताबों, उसके रसूलों और आख़िरत के दिन पर दिन पर ईमान ज़रूरी है। क्योंकि शिर्क, अल्लाह के इनकार, उसकी उतारी हुई वह्य को ठुकराने और अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नबूवत की अवहेलना से बड़ा कोई गुनाह नहीं है। अतः जिन यहूदियों, ईसाइयों तथा अन्य धर्म के मानने वालों ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के नबी होने की बात सुनी और आपपर ईमान लाने तथा इस्लाम धर्म को ग्रहण करने से इनकार कर दिया, उनको जहन्नम जाना पड़ेगा और वहाँ वो हमेशा रहेंगे। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है :
{إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَالْمُشْرِكِينَ فِي نَارِ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ أُولَـٰئِكَ هُمْ شَرُّ الْبَرِيَّةِ} (निःसंदेह किताब वालों और मुश्रिकों में से जो लोग काफ़िर हो गए, वे सदा जहन्नम की आग में रहने वाले हैं, वही लोग सबसे बुरे प्राणी हैं।)
[98 : 6]
चूँकि मानव समाज की ओर अल्लाह का अंतिम संदेश उतर चुका है, इसलिए इस्लाम तथा अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नबूवत की ख़बर पाने वाले हर व्यक्ति के लिए आपपर ईमान लाना, आपकी शरीयत का पालन करना और आपके आदेशों एवं निषेधों का पालन करना अनिवार्य है। अतः जिसने इस अंतिम संदेश के बारे में सुना और इसे ठुकरा दिया, अल्लाह उसकी ओर से कुछ भी ग्रहण नहीं करेगा और उसे आख़िरत में यातनाग्रस्त करेगा। इसका एक प्रमाण उच्च एवं महान अल्लाह का यह कथन है :
﴿وَمَن یَبۡتَغِ غَیۡرَ ٱلۡإِسۡلَـٰمِ دِینࣰا فَلَن یُقۡبَلَ مِنۡهُ وَهُوَ فِی ٱلۡـَٔاخِرَةِ مِنَ ٱلۡخَـٰسِرِینَ﴾ (और जो इस्लाम के अलावा कोई और धर्म तलाश करे, तो वह उससे हरगिज़ स्वीकार नहीं किया जाएगा और वह आख़िरत में घाटा उठाने वालों में से होगा।)
[3 : 85]
एक अन्य स्थान में अल्लाह तआला ने कहा है :
(قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ تَعَالَوْا إِلَىٰ كَلِمَةٍ سَوَاءٍ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ أَلَّا نَعْبُدَ إِلَّا اللَّهَ وَلَا نُشْرِكَ بِهِ شَيْئًا وَلَا يَتَّخِذَ بَعْضُنَا بَعْضًا أَرْبَابًا مِّن دُونِ اللَّهِ ۚ فَإِن تَوَلَّوْا فَقُولُوا اشْهَدُوا بِأَنَّا مُسْلِمُونَ) ((ऐ नबी!) कह दीजिए : ऐ किताब वालो! आओ एक ऐसी बात की ओर जो हमारे बीच और तुम्हारे बीच समान (बराबर) है; यह कि हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करें और उसके साथ किसी चीज़ को साझी न बनाएँ तथा हममें से कोई किसी को अल्लाह के सिवा रब न बनाए। फिर यदि वे मुँह फेर लें, तो कह दो कि तुम गवाह रहो कि हम (अल्लाह के) आज्ञाकारी हैं।)
[3 : 64]