दूसरे के खर्च पर हज्ज करना
सभी प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
इसमें कोई हरज (आपत्ति) की बात नहीं है कि इंसान दूसरे के खर्च पर हज्ज करे, चाहे वह दूसरा उसका बेटा, या उसका भाई या उसका दोस्त . . . हो, और इस से हज्ज के सही होने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, तथा हज्ज के सही होने की शर्तों में से यह नहीं है कि इंसान हज्ज पर अपने धन से खर्च करे।
इफ्ता की स्थायी समिति से एक ऐसी महिला के बारे में पूछा गया जो अपने मेज़बान को हज्ज का पूरा खर्च उठाने का भार डालती है तो क्या उसका हज्ज सही है ॽ
तो उसने उत्तर दिया :
उसके हज्ज के कर्तव्य की अदायगी के सही होने पर इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा कि उसने उस पर अपने धन से कुछ भी खर्च नहीं किया है, या उसने थोड़ा खर्च किया है और उसके अलावा किसी दूसरे ने उसके हज्ज की लागत का अधिकतर हिस्सा खर्च किया है, इस आधार पर अगर उसका हज्ज उसकी शर्तों, अरकान व वाजिबात की पूर्ति करने वाला है तो इससे उसके ऊपर से हज्ज का फरीज़ा समाप्त हो जायेगा, अगरचे किसी दूसरे ने उसका खर्च उठाया है।” अंत हुआ। “फतावा स्थायी समिति” (11/34)
तथा स्थायी समिति (11/36) से हाकिम (शासक) के खर्च पर हज्ज करने के हुक्म के बारे में प्रश्न किया गया, तो उसने उत्तर दिया :
उनके लिए ऐसा करना जायज़ है, और उनका हज्ज सही है, सामान्य प्रमाणों के आधार पर।” अंत हुआ।
तथा स्थायी समिति के फतावा (11/37) में यह भी आया है कि :
“अगर लड़के ने अपना फर्ज़ हज्ज अपने बाप के माल से कर लिया तो उसका हज्ज सही है।” अंत हुआ।
तथा स्थायी समिति (11/40) ने उस आदमी के बारे में जो किसी धार्मिक प्रतियोगिता में सफल हुआ और उसका पुरस्कार हज्ज था, फरमाया कि :
“आपका हज्ज किफायत करेगा, और आपकी ओर से फरीज़ा (कर्तव्य) की अदायगी समझा जायेगा।” अंत हुआ।