अल्लाह को गाली देनेवाले की सज़ा | जानने अल्लाह

अल्लाह को गाली देनेवाले की सज़ा


अब्दुल अज़ीज़ बिन मरज़ूक़ अत्तरीफ़ी

विद्वानों का इस बात पर इत्तिफाक़ (सर्वसहमति) है कि अल्लाह को गाली देनेवाले को कुफ्र करने की वजह से क़त्ल कर दिया जायेगा, और वह क़त्ल किए जाने के बाद मुसलमानों के प्रावधानों : उस पर जनाज़ा की नमाज़, स्नान, कफन, दफन और दुआ का अधिकारी नहीं होगा। चुनाँचे उनका विचार है कि उस पर (जनाज़ा की) नमाज़ पढ़ी जायेगी न उसे स्नान कराया जायेगा, न उसे कफन पहनाया जायेगा और न ही उसे मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में दफन किया जायेगा, तथा उसके लिए दुआ करना भी जायज़ नहीं है ; क्योंकि वह मुसलमानों में से नहीं है !

विद्वानों ने केवल उसकी तौबा के क़बूल किए जाने के बारे में मतभेद किया है, यदि उसने अल्लाह तआला के बारे में अपने घृणास्पद काम या कथन से तौबा कर लिया है, और क्या क़त्ल से पहले उससे तौबा करवाया जायेगा, या उसे क़त्ल कर दिया जायेगा और दुनिया में उसकी तौबा को नहीं सुना जायेगा, और अल्लाह तआला आखिरत में उसके बातिन का ज़िम्मेदार होगा ? इस संबंध में उन्हों ने विद्वानों के दो मश्हूर कथनों पर मतभेद किया है :

प्रथम कथन :

उसकी तौबी नहीं स्वीकार की जायेगी, बल्कि बिना तौबा कराये ही उसे क़त्ल करना अनिवार्य है, और उसका तौबा आखिरत में अल्लाह के हवाले है, हनाबिला और उनके अलावा फुक़हा के एक समूह के यहाँ यही मश्हूर कथन है। यही उमर बिन खत्ताब और इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा और उनके अलावा का प्रत्यक्ष कथन है जैसाकि पीछे गुज़र चुका, और यही अहमद बिन हंबल के मश्हूर कथन का प्रत्यक्ष है।

इसका कारण :

यह है कि तौबा ज़ाहिरी अपराध (जुर्म) को समाप्त नहीं करती है, और न ही लोगों के यहाँ, अल्लाह को गाली देने और उसका मज़ाक उड़ाने की लापरवाही से जन्म लेने वाली खराबी को दूर कर सकती है; अत: तौबा क़बूल कर लेने से लोग इस घोर पाप में लापरवाही से काम लेंगे, और जब सत्ता और अदालत पर पेश किये जायेंगे तो तौबा का प्रदर्शन करेंगे, फिर छोड़ दिए जायेंगे। ऐसा करना लोगों के अंदर कुफ्र पर दु:साहस पैदा करेगा और उनके दिलों में उसके मामले को आसान और तुच्छ बना देगा, जबकि दण्ड संहिता अपराधी को सीख देने और उसे पवित्र करने, तथा उसके कथन और कर्म के समान करने और कहने वाले दूसरे व्यक्ति को उससे रोकने और दूर रखने के लिए निर्धारित किया गया है, और तौबा स्वीकार कर लेना दण्ड के दोनों उद्देशों को समाप्त कर देता है !

दूसरा कथन :

उससे तौबा करवाया जायेगा और उसकी तौबा को स्वीकार किया जायेगा, अगर उसकी ओर से सच्चार्इ और अपने अपराध की तरफ पुन: न लौटने का संकल्प प्रकट हो, यही जमहूर विद्वानों का कथन है।

उनके तौबा को क़बूल करने का कारण :

यह है कि गाली देना कुफ्र है, और काफिर का हर कुफ्र से तौबा करना स्वीकृत है, जैसे कि अनेकेश्वरवादी, मूर्तिपूजक और नास्तिक लोग इस्लाम में प्रवेश करते हैं, और उनका इस्लाम में प्रवेश करना उनके पिछले कुफ्र को मिटा देता है, और अल्लाह तआला तौबा करने वाले की तौबा को क़बूल करता है और उसे माफ कर देता है। और गाली के द्वारा अल्लाह पर अत्याचार करना अल्लाह  सर्वशक्तिमान का हक़ है और अल्लाह तआला ने उसे गाली देकर अपने आप पर अत्याचार करने वाले को क्षमा कर दिया है और हर शिर्क करनेवाले के तौबा को क़बूल किया है।

जबकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को गाली देने का मामला इसके विपरीत है, वह ऐसा हक़ जिसे लेना अनिवार्य है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी मृत्यु के कारण प्रत्येक गाली देनेवाले को क्षमा नही प्रदान किया है।

और इस संबंध में मूल सिद्धांत :

आप  सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के महान हक़ को लेना है, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को गाली देना कुफ्र है, और ऐसा करने वाले के हक़ में क़त्ल करना अनिवार्य है।

फिर यह बात भी है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को गाली देना, लोगों के अंदर आपके पद वह प्रतिष्ठा को प्रभावित करत है, और दिलों के अन्दर आपके स्थान को कमज़ोर कर देता है, जबकि अल्लाह को गाली देने और बुरा भला कहने का मामला इसके विपरीत है ! क्योंकि अल्लाह को गाली देने वाला स्वयं अपने आपको नुक़सान पहुँचाता है।

$ सत्य तो यह है कि :

जिसने अल्लाह सर्वशक्तिमान को गाली दिया, उसे क़त्ल करना अनिवार्य है और उससे तौबा नहीं करवाया जायेगा, और उसकी तौबा अल्लाह के हवाले है जिससे वह अपने बातिन के साथ मुलाक़ात करेगा, और अल्लाह तआला अपने न्याय, या अपनी क्षमा के द्वारा उसके साथ व्यवहार करेगा।

और जिस व्यक्ति ने अल्लाह को गाली दी और तौबा कर लिया, और उसे तलब करने और उस पर सक्षम होने से पहले अपनी तौबा को ज़ाहिर कर दिया; तो उसकी सच्चार्इ प्रकट होने की वजह से उसकी तौबा क़बूल की जायेगी। तो उसका हुक्म उन काफिरों के समान है जो स्वेच्छा इस्लाम में प्रवेश करते हैं, भले ही वे अपने इस्लाम सवीकारने से पहले अल्लाह को बुरा भला कहने पर सहमत थे।

अल्लाह तआला को बुरा भला कहने (गाली देने) के दो प्रकार हैं:

प्रथम : प्रत्यक्ष और स्पष्ट गाली

जैसे कि अल्लाह सर्वशक्तिमान की अस्तित्व को लानत करना, उसकी निंदा करना, उसका मज़ाक उड़ाना, उसके अंदर ऐब और कमी निकालना, तो ऐसे व्यक्ति पर पिछले सभी प्रावधान (अहकाम) लागू होंगे, और जब उलमा अल्लाह सर्वशक्तिमान को गाली देने के अहकाम का उल्लेख करते हैं तो यही मुराद होता है।

दूसरा : अप्रत्यक्ष गाली

जैसे कि अल्लाह तआला की उन निशानियों और सृष्टियों को गाली देना जिनमें वह तसर्रूफ करता है, जिनका मनुष्य के चयन अधिकार और कमार्इ के समान, कोर्इ चयन अधिकार और कमार्इ नहीं होती है, जैसे कि ज़माना (युग), दिनों, घंटों, क्षणों, महीनों, सालों, ग्रहों और उनके संचालन को गाली देना, तो इस पर गाली देने वाले के कुफ्र, उसे क़त्ल करने के हुक्म आदि के बारे में पिछले प्रावधान लागू नहीं होंगे, सिवाय इसके कि यह स्पष्ट हो जाए कि उसने उन्हें चलाने और जारी करने वाले का क़सद किया है, और स्पष्ट रूप से अल्लाह सर्वशक्ति को मुराद लिया है।

सहीहैन (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम) में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की रिवायत से साबित है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘अल्लाह ने फरमाया :

आदम का बेटा मुझे तकलीफ पहुँचाता है, वह ज़माने को गाली देता है, और मैं ही ज़माना हूँ, मेरे ही हाथ में सब अधिकार है, मैं रात और दिन को पलटता और फेरता हूँ।

इसे बुखारी (हदीस संख्या : 4826, 7491) और मुस्लिम (2246) ने उल्लेख किया है।

तथा एक रिवायत के शब्द यह हैं कि : ‘‘इब्ने आदम मुझे कष्ट देता है, वह कहता है

आह ज़माने की विफलता! ; तो तुम में से कोर्इ ‘‘आह ज़माने की विफलता’’ न कहे, क्योंकि मैं ही ज़माना हूँ, उसके दिन और रात को उलटता फेरता हूँ, फिर जब चाहूँगा उन्हें समेट लूँगा।

सहीह मुस्लिम'' (हदीस संख्या : 2246).

तथा ग्रहें जैसे सूर्य और चंद्रमा, और उनके प्रभाव जैसे रात व दिन और ज़माने, संचालित हैं उन्हें चयन का अधिकार नहीं है, वह अकेले अल्लाह की इच्छा से बाहर नहीं निकलते हैं, और न ही उनकी अपनी इच्छा, कमार्इ और अधिकार है, उन्हें ब्रहमांड से संबंधित आदेश के द्वारा ही आज्ञा दी जाती है, उनके लिए उससे बाहर निकलने अधिकार नहीं है।

अत: उनको गाली देना और बुरा भला कहना, उनके संचालक और उन्हें आदेश देने वाले अल्लाह सर्वशक्तिमान पर हमला करना और उनके अंदर उसकी बुद्धिमत्ता और इच्छा पर आपत्ति व्यक्त करना है।

इसी कारण अल्लाह तआला ने ज़माने को गाली देने को आवश्यक रूप से स्वयं उसे सर्वशकितमान को गाली देना क़रार दिया है!

तथा अल्लाह तआला ने इंसान को गाली देने को अल्लाह सर्वशक्तिमान को गाली देने के समान नहीं बनाया है, क्योंकि इंसान को अधिकार और इच्छा प्राप्त है जो अल्लाह तआला ने उसके लिए प्रदान किया है,

अल्लाह तआला ने फरमाया

और तुम सर्वसंसार के पालनहार अल्लाह के चाहे बिना कुछ नहीं चाह सकते।

सूरतुत् तकवीर : 29

जहाँ तक ग्रहों जैसे सूर्य और चंद्रमा की बात है,

तो अल्लाह तआला ने उनके बारे में फरमाया है

न सूर्य के वश में है कि चंद्रमा को पकड़े और न रात, दिन से आगे बढ़ जाने वाली है, और सब के सब आकाश में तैरते फिरते हैं।

सूरत यासीन : 40

तो अल्लाह तआला ने उनके बारे में फरमाया है

न सूर्य के वश में है कि चंद्रमा को पकड़े और न रात, दिन से आगे बढ़ जाने वाली है, और सब के सब आकाश में तैरते फिरते हैं।

सूरत यासीन : 40

अल्लाह और उसके गुणों का सम्मान करना अनिवार्य है !

$ अल्लाह तआला के सम्मान के अंतर्गत : उसके प्रबंधन, उसके आदशे व निषेध का सम्मान करना, उनके पास रूकना और उनका अनुपालन करना, तथा जिस चीज़ का ज्ञान इंसान को नहीं है उसके अंदर न पड़ना है।

$ तथा अललाह तआला के सम्मान में से ही : उसको याद करना, उसको पुकारना, उससे मांगना, और ब्रह्माण्ड की घटनाओं को केवल उसी अकेले के साथ जोड़ना है ; क्योंकि वही उनका निर्माता व रचयिता और उनका प्रबंधन करने वाला है उसका कोर्इ साझी नहीं ;

अल्लाह तआला ने फरमाया

और उन लोगों ने जैसा सम्मान अल्लाह का करना चाहिए था नहीं किया, क़ियामत के दिन सारी धरती उसकी मुट्ठी में होगी और आकाश उसके दाहिने हाथ में लपेटे हुए होंगे। वह पवित्र और सर्वोच्च है हर उस चीज़ से जिसे लोग उसका साझी ठहराते हैं।

सूरतुज़ ज़ुमर : 67

इसी पर संक्षेप के साथ इस पत्रिका का समापन होता है। और अकेला अल्लाह ही सहायक और शुद्ध मार्ग दिखानेवाला है, उसका कोर्इ साझी नहीं, हम उससे अच्छे इरादे और सर्व व्यापी लाभ का प्रश्न करते हैं। अल्लाह तआला हमारे र्इश्दूत मुहम्मद, उनकी संतान, उनके साथियों और भलार्इ के साथ परलोक के दिन तक उनका अनुसरण करने वालों पर दया व शांति अवतरित करे।



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